

लठमार होली उत्तर प्रदेश के बरसाना और नंदगांव में मनाई जाने वाली एक अनूठी परंपरा है, जो श्रीकृष्ण और राधा की प्रेम लीलाओं से जुड़ी हुई है। यह होली आम होली से अलग होती है, क्योंकि इसमें रंगों के साथ-साथ लाठियों (डंडों) का भी खेल होता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाना आकर राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेलने की कोशिश करते थे, लेकिन गोपियाँ लाठियों से उन्हें भागने पर मजबूर कर देती थीं। इसी परंपरा को आज भी जीवंत रूप में निभाया जाता है।
होली से कुछ दिन पहले ही बरसाना और नंदगांव रंगों में डूबने लगते हैं। पहले दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना जाते हैं, जहाँ महिलाएँ उन्हें प्रेमपूर्वक लाठियों से मारती हैं और पुरुष अपनी ढाल से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। अगले दिन बरसाना के पुरुष नंदगांव जाते हैं, और वहाँ भी यही दृश्य दोहराया जाता है। इस दौरान गुलाल उड़ता है, ढोल-नगाड़ों की गूंज होती है, और चारों ओर “राधे-राधे” और “श्रीकृष्ण” के जयकारे सुनाई देते हैं। इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों लोग आते हैं।
लठमार होली केवल एक खेल या परंपरा नहीं, बल्कि प्रेम, उल्लास और भक्ति का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम केवल दिव्यता से भरा था, बल्कि उसमें हास-परिहास और आनंद भी था। यह पर्व केवल रंगों से नहीं, बल्कि संगीत, भक्ति और संस्कृति के रंगों से भी सराबोर होता है। इस उत्सव में भाग लेने वाला हर व्यक्ति प्रेम और भक्ति के इस अद्भुत संगम में रंग जाता है, और यह यादगार पल उसकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है।